एक पिता अपने नौ वर्ष के बेटे के साथ पतंग उड़ा रहे थे।पतंग काफी ऊंचाई छू रही थी। वो लगभग बदलो को छूती हुई हवा के साथ लहरा रही थी।
कुछ समय बाद बेटा पिता से बोला “ पापा, हमारी पतंग धागे की वजह से ऊपर नहीं जा पा रही है , हमें इस धागे को तोड़ देना चाहिए । इसके टूटते ही हमारी पतंग ऊपर चली जाएगी।“
पिता ने बेटे की बात सुनी और फिर पतंग के धागे को तोड़ दिया।
पुत्र के चेहरे पर खुशी दिखाई दी , पर ये खुशी कुछ पल के लिए ही थी क्योंकि वह पतंग थोड़ी ऊपर जाने के बाद नीचे आने लगी और थोड़ी देर में जमीन पर आकर गिर गयी।
यह देख पिता ने बेटे को कहा “पुत्र जिंदगी की जिस उचाई पर हम है वहा से हमे अक्सर लगता है कि कुछ चीजें जिस से हम बंधे हुये है वो हमें उचाईयों पर जाने से रोक रही है।जैसे कि हमारे माता,पिता, अनुशासन आदि। इसलिए हम इन सब बंधन से आजादी चाहते हैं ।
वास्तव में यही वो धागा होता है जो पतंग को उचाईयों पर ले जाता है ,पतंग को ऊंचाई पर बनाये रखता है ।इसे तोड़ने पर थोड़ी देर पतंग जरूर ऊंचाई पर गयी, पर थोड़ी देर में जमीन पर आ गिरी ।।
पतंग तब तक उचाईयों को छूती रंहेंगी जब तक पतंग उस डोर से बंधी रंहेंगी।
माता पिता या जो भी बड़े हमें अनुशासन में रखते है , वास्तव में वह हमारी डोर को थामे हुए है जिनसे हमारी जीवन रूपी पतंग ऊँची उड़ रही है ।
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