
Rahim ke Dohe
“निज कर क्रिया रहीम कहि सीधी भावी के हाथ, पांसे अपने हाथ में दांव न अपने हाथ ।” |
रहीम कहते हैं कि अपने हाथ में तो केवल कर्म करना ही होता है ,सिद्धि तो भाग्य से ही मिलती है । जैसे चौपड़ खेलते समय पांसे तो अपने हाथ में रहते हैं पर दांव क्या आएगा यह अपने हाथ में नहीं होता । |
“राम न जाते हरिन संग से न रावण साथ, जो रहीम भावी कतहूँ होत आपने हाथ ।” |
रहीम कहते हैं कि यदि होनी अपने ही हाथ में होती, यदि जो होना है उस पर हमारा बस होता तो ऐसा क्यों होता कि राम हिरन के पीछे गए और सीता का हरण हुआ ।क्योंकि होनी को होना था , उस पर हमारा बस न था । |
“ रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय, टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय ।” |
रहीम कहते हैं कि प्रेम का नाता नाज़ुक होता है । इसे झटका देकर तोड़ना उचित नहीं होता । यदि यह प्रेम का धागा एक बार टूट जाता है तो फिर इसे मिलाना कठिन हो है और यदि मिल भी जाए तो टूटे हुए धागों के बीच में गाँठ पड़ जाती है । |
“एकहि साधै सब सधैए, सब साधे सब जाय , रहिमन मूलहि सींचबोए, फूलहि फलहि अघाय |” |
एक को साधने से सब सधते हैं. सब को साधने से सभी के जाने की आशंका रहती है । वैसे ही जैसे किसी पौधे के जड़ मात्र को सींचने से फूल और फल सभी को पानी प्राप्त हो जाता है और उन्हें अलग अलग सींचने की जरूरत नहीं होती है | |
“तरुवर फल नहिं खात है सरवर पियहि न पान, कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान |” |
रहीम कहते हैं कि वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते हैं और सरोवर भी अपना पानी स्वयं नहीं पीता है। इसी तरह अच्छे और सज्जन व्यक्ति वो हैं जो दूसरों के कार्य के लिए संपत्ति को संचित करते हैं। |
“रहिमन ओछे नरन सो, बैर भली न प्रीत , काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँती विपरीत |” |
गिरे हुए लोगों से न तो दोस्ती अच्छी होती हैं और न तो दुश्मनी । जैसे कुत्ता चाहे काटे या चाटे दोनों ही अच्छा नहीं होता | |
“जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घटी जाहिं. गिरधर मुरलीधर कहें, कछु दुःख मानत नाहिं ।“ |
रहीम कहते हैं कि बड़े को छोटा कहने से बड़े का बड़प्पन नहीं घटता, क्योंकि गिरिधर (कृष्ण) को मुरलीधर कहने से उनकी महिमा में कमी नहीं होती । |
“रहिमन विपदा हु भली, जो थोरे दिन होय , हित अनहित या जगत में, जान परत सब कोय |” |
यदि संकट कुछ समय की हो तो वह भी ठीक ही हैं, क्योकी संकट में ही सबके बारे में जाना जा सकता हैं की दुनिया में कौन हमारा अपना हैं और कौन नहीं | |
“वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग. बांटन वारे को लगे, ज्यों मेंहदी को रंग ।“ |
रहीम कहते हैं कि वे लोग धन्य हैं जिनका शरीर सदा सबका उपकार करता है । जिस प्रकार मेंहदी बांटने वाले के अंग पर भी मेंहदी का रंग लग जाता है, उसी प्रकार परोपकारी का शरीर भी सुशोभित रहता है । |
“ रहिमन अंसुवा नयन ढरि, जिय दुःख प्रगट करेइ, जाहि निकारौ गेह ते, कस न भेद कहि देइ।“ |
रहीम कहते हैं की आंसू नयनों से बहकर मन का दुःख प्रकट कर देते हैं। सत्य ही है कि जिसे घर से निकाला जाएगा वह घर का भेद दूसरों से कह ही देगा । |
“ रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार, रहिमन फिरि फिरि पोइए, टूटे मुक्ता हार ।“ |
यदि आपका प्रिय सौ बार भी रूठे, तो भी रूठे हुए प्रिय को मनाना चाहिए । क्योंकि यदि मोतियों की माला टूट जाए तो उन मोतियों को बार बार धागे में पिरो लेना चाहिए । |
“रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि , जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवार |” |
बड़ों को देखकर छोटों को भगा नहीं देना चाहिए। क्योंकि जहां छोटे का काम होता है, वहां बड़ा कुछ नहीं कर सकता। जैसे कि सुई के काम को तलवार नहीं कर सकती। |
“साधु सराहै साधुता, जाती जोखिता जान, रहिमन सांचे सूर को बैरी कराइ बखान ।“ |
रहीम कहते हैं कि इस बात को जान लो कि साधु सज्जन की प्रशंसा करता है ।यति, योगी और योग की प्रशंसा करता है पर सच्चे वीर के शौर्य की प्रशंसा उसके शत्रु भी करते हैं । |
“रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय , सुनी इठलैहैं लोग सब, बांटी न लेंहैं कोय |” |
रहीम कहते हैं की अपने मन के दुःख को मन के भीतर छिपा कर ही रखना चाहिए। दूसरे का दुःख सुनकर लोग इठला भले ही लें, उसे बाँट कर कम करने वाला कोई नहीं होता | |
“ पावस देखि रहीम मन, कोइल साधे मौन, अब दादुर वक्ता भए, हमको पूछे कौन ।“ |
वर्षा ऋतु को देखकर कोयल और रहीम के मन ने मौन साध लिया है. अब तो मेंढक ही बोलने वाले हैं। हमारी तो कोई बात ही नहीं पूछता । अभिप्राय यह है कि कुछ अवसर ऐसे आते हैं जब गुणवान को चुप रह जाना पड़ता है. उनका कोई आदर नहीं करता और गुणहीन वाचाल व्यक्तियों का ही बोलबाला हो जाता है । |
“बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय , रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय |” |
मनुष्य को सोचसमझ कर व्यवहार करना चाहिए।क्योंकि किसी कारणवश यदि बात बिगड़ जाती है तो फिर उसे बनाना कठिन होता है। जैसे यदि एकबार दूध फट गया तो लाख कोशिश करने पर भी उसे मथ कर मक्खन नहीं निकाला जा सकेगा | |
“समय पाय फल होत है, समय पाय झरी जात सदा रहे नहिं एक सी, का रहीम पछितात |” |
रहीम कहते हैं कि उपयुक्त समय आने पर वृक्ष में फल लगता है। झड़ने का समय आने पर वह झड़ जाता है. सदा किसी की अवस्था एक जैसी नहीं रहती, इसलिए दुःख के समय पछताना व्यर्थ है | |
“जैसी परे सो सहि रहे, कहि रहीम यह देह , धरती ही पर परत है, सीत घाम औ मेह |” |
रहीम कहते हैं कि जैसी इस देह पर पड़ती है, सहन करनी चाहिए । क्योंकि इस धरती पर ही सर्दी, गर्मी और वर्षा पड़ती है अर्थात जैसे धरती शीत, धूप और वर्षा सहन करती है, उसी प्रकार हमारे शरीर को सुख-दुःख सहन करना चाहिए | |
“रहिमन निज मन की बिथा, मनही राखो गोय, सुनी इठलैहैं लोग सब, बांटी न लेंहैं कोय ।“ |
रहीम कहते हैं की अपने मन के दुःख को मन के भीतर छिपा कर ही रखना चाहिए। दूसरे का दुःख सुनकर लोग इठला भले ही लें, उसे बाँट कर कम करने वाला कोई नहीं होता । |
“रहिमन पैड़ा प्रेम को, निपट सिलसिली गैल , बिलछत पांव पिपीलिको, लोग लदावत बैल |” |
प्रेम की गली में कितनी ज्यादा फिसलन है! चींटी के भी पैर फिसल जाते हैं इस पर। और, हम लोगों को तो देखो, जो बैल लादकर चलने की सोचते है! (दुनिया भर का अहंकार सिर पर लाद कर कोई कैसे प्रेम के विकट मार्ग पर चल सकता है । वह तो फिसलेगा ही।) |
दोनों रहिमन एक से, जों लों बोलत नाहिं. जान परत हैं काक पिक, रितु बसंत के माहिं। |
कौआ और कोयल रंग में एक समान होते हैं। जब तक ये बोलते नहीं तब तक इनकी पहचान नहीं हो पाती।लेकिन जब वसंत ऋतु आती है तो कोयल की मधुर आवाज़ से दोनों का अंतरस्पष्ट हो जाता है । |
“मथत-मथत माखन रहे, दही मही बिलगाय , ‘रहिमन’ सोई मीत है, भीर परे ठहराय |” | सच्चा मित्र वही है, जो विपदा में साथ देता है। वह किस काम का मित्र, जो विपत्ति के समय अलग हो जाता है । मक्खन मथते-मथते रह जाता है, किन्तु मट्ठा दही का साथ छोड़ देता है | |
“रहिमन वहां न जाइये, जहां कपट को हेत , हम तो ढारत ढेकुली, सींचत अपनो खेत |” |
ऐसी जगह कभी नहीं जाना चाहिए, जहां छल-कपट से कोई अपना मतलब निकालना चाहे। हम तो बड़ी मेहनत से पानी खींचते हैं, कुएं से ढेंकुली द्वारा, और कपटी आदमी बिना मेहनत के ही अपना खेत सींच लेते हैं। |
“जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घटी जाहिं, गिरधर मुरलीधर कहें, कछु दुःख मानत नाहिं |” |
रहीम अपने दोहें में कहते हैं की किसी भी बड़े को छोटा कहने से बड़े का बड़प्पन कम नहीं होता । क्योकी गिरिधर को कान्हा कहने से उनकी महिमा में कमी नहीं होती | |
“जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग , चन्दन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग |” |
रहीम ने कहा की जिन लोगों का स्वभाव अच्छा होता हैं, उन लोगों को बुरी संगती भी बिगाड़ नहीं पाती । जैसे जहरीले साप सुगंधित चन्दन के वृक्ष को लिपटे रहने पर भी उस पर कोई प्रभाव नहीं डाल पाते | |
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