
एक दिन बादशाह ने बीरबल से पूछा-“क्या बीरबल, हमारे राज्य में कोई ऐसा भी है जो सर्दियों की इस रात में बाहर पानी में खड़ा रहे?”
बीरबल – “जहांपनाह, ऐसे बहुत लोग हैं।”
बादशाह – “इन सर्दियों में पानी में?”
बीरबल – “जी हां”
बादशाह – “मुझे विश्वास ही नहीं आता।”
बीरबल – “यह सच है।”
बादशाह – “साबित कर सकते हो?”
बीरबल – “जी, हां”
बादशाह – “हमें ऐसे आदमी दिखलाओ।”
बीरबल – “दिखा दूंगा। कल दिखाऊंगा।”
अगले दिन बीरबल एक धोबी को पकड़ लाया।
बीरबल – “यह आदमी सर्दियों में-रातभर पानी में खड़ा रह सकता है। जहांपनाह।”
बादशाह – “हम इसे बहुत इनाम देंगे।”
बीरबल – “यह रात को महल के पीछे जल में खड़ा रहेगा, कल आप इसे इनाम दे दीजिएगा।”
रात को ऐसा ही हुआ।धोबी रातभर पानी में खड़ा रहा।सर्दियों की ठिठुरती रात में वह गरीब पानी में सुबह तक खड़ा रहा और सुबह होने पर बीरबल उसे बादशाह के सामने ले गए।
बादशाह ने उसे रात को देख लिया था, इसलिए ऐसा तो कह नहीं सकते थे। कि वह खड़ा नहीं
था। वे बोले-“बीरबल, यह आदमी जल में कैसे खड़ा रहा?”
बीरबल – “आप इसी से पूछिये।”
बादशाह -“क्यों रे धोबी। तू रातभर इतनी ठण्ड में जल में कैसे खड़ा रहा? सर्दी भी लगी होगी और दिल भी नहीं लगा होगा। रात कैसे कटी?”
धोबी – “हुजूर, सारी रात मैं महल में जलते हुए चिराग पर ध्यान केन्द्रित किए खड़ा रहा।”
बादशाह – “ओह, तुम हमारे चिराग की गर्मी में रहे-सर्दी से बचते रहे, हाथ सेकते रहे।”
बीरबल – “आप कैसी बातें कह रहे हैं?”
बीरबल बोला-“कहीं यह सम्भव है।”
बादशाह -“हां, यहीं हुआ है। इस आदमी को इनाम नहीं मिलेगा।”
बीरबल नाराज हो गया, उसने कुछ दिनों की छुट्टी मांगी। बादशाह ने छुट्टी मंजूर नहीं की।
अगले दिन बीरबल दरबार नहीं गया।उसे अनुपस्थित देखकर बादशाह को चिन्ता हो गयी कि उसका अजीज साथी क्यों नहीं आया, बीरबल की नाराजगी का उसे दुख था।
पता लगाने के उद्देश्य से बादशाह बीरबल के निवास पर पहुंचे। बीरबल जो तमाशा कर रहे थे उसे देखकर चैंक पडे़।
उसने जमीन पर एक लम्बा बांस गाड़ा हुआ था जिसके ऊपर वाले सिरे पर हांडी बंधी हुई थी।जमीन पर बीरबल ने आग जला रखी थी।
जब बादशाह ने आग के पास कुर्सी पर बैठे हुए बीरबल से पूछा कि क्या तमाशा कर रहे हो तो बीरबल ने उत्तर दिया-“हुजूर, पेट में जरा गड़बड़ है।”
बादशाह -“फिर क्या कर रहे हो?”
बीरबल – “खिचड़ी पका रहा हूं।”
बादशाह – “खिचड़ी। ऐसे! क्या बेवकूफी की बात करते हो? हांडी इतनी दूर बंधी है और आग यहां जल रही है। ऐसे भी कहीं खिचड़ी पकती है। हांडी तक तो धुआ भी नहीं पहुंचेगा…. आग की गर्मी तो बहुत दूर की बात है, इसमें चावल, दाल?”
बीरबल – “जी हां- गल जायेंगे।”
बादशाह – “नहीं गलेंगे। कभी नहीं गलेंगे। यह तुम्हारी मूर्खता है।”
बीरबल -“मूर्खता नहीं है हुजूर, खिचड़ी पक रही है।”
बादशाह -“बीरबल, तुम पागल तो नहीं हो गये?”
“नहीं जनाब, खिचड़ी पका रहा हूं। आप खुद सोचिए, जब दो सौ गज दूर खड़ा आदमी महल के चिराग से अपने शरीर को सेंक सकता है तो पांच गज की दूरी पर टंगी हांडी में खिचड़ी क्यों नहीं पकेगी?”
बादशाह मुस्कराये।उन्होंने कहा-“हम समझ गये हैं। तब भी हम समझते थे। जानबूझकर इनाम नहीं दिया था। देखना चाहते थे, तुम क्या करिश्मा करोगे, देख लिया। तुम सचमुच बुद्धिमान हो। उस धोबी को कल मुंह मांगा इनाम खजाने से दे दिया जायेगा।”
और अगले ही दिन। धोबी को दरबार में बुलाया गया।बादशाह ने उसे काफी इनाम दिया। धोबी खुश हो गया।
ye akbar birbal ki ek bahut hi popular story hai or kaafi entertainning bhi mujhe isko pdh kr kaafi accha lga or maza aaya.